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7 Jun 2023 · 1 min read

अगनित अभिलाषा

एक जीवन अगनित अभिलाषा

पता था तुझको जाना निश्चित,
दिशा अपरिचित तिथि अनिश्चित,
फिर भी तूने महल बनाए,
भर भर कमरे स्वप्न सजाए,
बरसों का सामान है जोड़ा,
करने होड़ तू सबसे दौड़ा,
अन्तर्मन से जुड़ नही पाया,
खुद की ओर ही मुड़ न पाया,
शब्द शब्द उतरा बेतहाशा,
मूक हृदय की समझी न भाषा।
एक जीवन अगनित अभिलाषा।

आंखमिचोली भाग्य है खेला,
कभी है मातम कभी है मेला,
‘हाय हाय’ चीत्कार बहुत है,
‘और और’ की मार बहुत है,
खोने का भय मन में समेटे,
पाने का सुख साथ में ले के,
पहली अंतिम श्वास भरे तन,
इन दोनों के बीच था जीवन,
जान सका न भेद ज़रा सा।
मिटटी के तन से इतनी आशा।
एक जीवन अगनित अभिलाषा।

कितना पाया कितना खोया,
कितना लूटा कितना ढोया,
करनी का बही खाता खोला,
‘जीवन कम था’ तब मन बोला,
पलटे समय जो ‘कुछ’ कर जाऊं,
जर्जर काया क्या कर पाऊँ,
इसके आगे अब तुलसी दल,
और साथ में कुछ गंगाजल,
बनने चला था भाग्य विधाता।
राख हुआ तन खत्म तमाशा।
एक जीवन अगनित अभिलाषा।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 248 Views
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