सहज – असहज
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सहज ही मिल जाती हैं जब खुशियाँ,
उनकी कद्र ही गंवा देते हैं कुछ लोग,
सहज ही खर्च कर देते हैंसब खुशियाँ,
असहज हो जाते हैं ज़िन्दगी में लोग।
ठोकरें खाने के सिवा चारा नहीं रहता,
उधार ही लेनी पड़ती हैं कुछ खुशियाँ,
जीने के लिए कुछ भी बचा नहीं रहता,
बस बचती हैं कुछ उधार की खुशियाँ।
उधार ज़िन्दगी की आस बन जाता है,
ज़िन्दगी पे तो उपकार कर ही जाता है,
इक पल की ही खुशी चाहे दे जाता है,
हर उधार पे मौत की सौगात दे जाता है।
सहज ही मिल जाती हैं जब खुशियाँ,
उनकी कद्र ही गंवा देते हैं कुछ लोग,
सहज ही खर्च कर देते हैं सब खुशियाँ,
असहज हो जाते हैं ज़िन्दगी में लोग।