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26 Oct 2023 · 1 min read

*मन में पर्वत सी पीर है*

मन में पर्वत सी पीर है
*********************

मन मे पर्वत सी पीर है,
कुछ भी ना दिल में धीर है।

जग देखा,देखी है घरदारी,
कोई भी ना आलमगीर है।

हर्ष की बेला मुख मोड़ती,
बहता आँखों में नीर है।

अपनें भी तो अब गैर है,
टूटी फूटी सी तकदीर है।

बदली बनती पर टूटती,
मैना हक में ना कीर है।

छल से छलती है तन्हाई,
हिय में रहती यूँ चीर है।

मनसीरत टूटा है खवा,
राँझे से दूरी पर हीर है।
*******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

177 Views
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