“सहजविद्या की प्राप्ति ही वास्तविक वृष्टि”
अव्याकृता है सरल दृष्टि उसकी,
अनुस्यूत जिसमें ब्रह्माण्ड सारा,
अधम भी अनुभव करे पुण्यशाली,
मातृका निज ममता पिरोती,
है विवेचित शब्दों का अन्तर,
प्रेमहेतु सृजन करता वह सृष्टि,
सहज विद्या ही है उसकी वृष्टि।।1।।
है समागत प्राण,शरीर सम्बन्ध,
परमशिव का आत्मज्ञान ही दान,
अवाप्त निर्माण की क्षमता करे,
विकसित योगी में,आनन्द का विलास भी,
सार्वदेशिक स्वातन्त्र्यभाव प्रकट हो,
शिवतुल्य,शिवसमाविष्ट करने के लिए,
प्रेमहेतु सृजन करता वह सृष्टि,
सहज विद्या ही है उसकी वृष्टि ।।2।।
मोहावरण की सिद्धि को नष्ट करना,
जागरूक योगी को सिखाता जगत रश्मि,
बीजात्मिका पराशक्ति का ध्यान करना,
जो बताता अन्तरात्मा ही रंगमंच है,
जीव का अज्ञान का तिरोहित होना,
है अखिल की शक्ति का लघु निदर्शन,
प्रेमहेतु सृजन करता वह सृष्टि,
सहज विद्या ही है उसकी वृष्टि।।3।।
आवरण,विक्षेप हैं अज्ञान शक्तियाँ,
है दयालु का मुक्त स्वतंत्र कौशल,
चित्त,शक्ति,माया,भक्ति और संहार,
प्रयोजन,निष्प्रयोजन भी लीला के प्रमाण,
अज्ञान का आश्रय है जीव,उसको,
मिटाता वह अपनी कृपा की चोट से,
प्रेमहेतु सृजन करता वह सृष्टि,
सहज विद्या ही है उसकी वृष्टि।।4।।
मिथ्या,सत्य,भ्रम और यथार्थ,प्रगल्भ,
अकर्ता,अभोक्ता, विकाररहित,विशुद्ध,
जागतिक पदार्थों की नवीनता भी,
है सब वही,वही व्यापक सभी में,
नहीं चाहिये उसे अन्वेषण के लिए श्रम,
समर्पण चाहिए बस उसे शुद्ध और सरल,
प्रेमहेतु सृजन करता वह सृष्टि,
सहज विद्या ही है उसकी वृष्टि।।5।।
©अभिषेक पाराशर?????