सरिता
सरिता
हिम शिखर से निकल
राह मेरी बड़ी कठिन विकल
चलूं मै इठलाती
इतराती सी
परवाह नही मुझे कभी
राह की
हो मैंदान या गहरी खाई
चलूं रेंगती कभी
गाती आई
दुर्गम वन हो या
उच्च श्रृंखला
मै तो कभी नही
उकताई
टकराती पाषाण भेदती
राहे अपनी मैंने स्वयं
बनाई बूझो तो मैं कौन
हूॅ भाई?
कोई कहे नदिया कोई तटिनी
पर सुप्रचलित इनमें
सरिता माई।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड