सरसी/सुमंदर या कबीर छंद की परिभाषा व रचनाक्रम: इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
सरसी/सुमंदर या कबीर छंद
(चार चरण, प्रत्येक में १६-११ मात्रा अर्थात १६ पर यति, चरणान्त में गुरु-लघु)
‘सरसी’ छंद लगे अति सुंदर, नाम ‘सुमंदर’ धीर .
नाक्षत्रिक मात्रा सत्ताइस , उत्तम गेय ‘कबीर’..
विषम चरण प्रतिबन्ध न कोई, गुरु-लघु अंतहिं जान.
चार चरण यति सोलह ग्यारह, ‘अम्बर’ देते मान..
–इं० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
सरसी : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २७ मात्राएँ (१६वीं मात्रा पर यति) और अंत में गुरु और लघु होते हैं। इसे सुमंदर भी कहते हैं। होली के दिनों में गाया जानेवाला कबीर प्रायः इसी छंद में होता है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)स्त्री० [हिं० सरस] वह जमीन जिसमें सरसता या नमी हो।