सम पर रहना
अपना मनचाहा, गर ,
ज्यादा होने लगे,
तो भी,
मन ,
उखड़ने सा लगता है।
हर समय विलासिता का,
परिवेश,
बैचैन करता है ,
और ,अत्यधिक
आनंद को ,
भी ,क्लेश ही
पकड़ लेता है।
उसकी,
हर हरकत
पर रखे हुए
अपनी नज़र।
इसीलिए, , भरपूर ,
सुख मे डूबकर,
हम जान ही नही पाते है,
कि,
जो भाव हमने
बहुत जतन से , बस, सुख पाने को
पाये हैं,
दरअसल,
उन सबके
क्लेशमय होने की
साजिश होती रही है।
इसलिए,
हद से
अधिक सुख ,
आराम ,चैन ,प्यार ,
पैसा
यह सब
क्लेश को
पैदा करने के
मुख्य बीज
हैं। बहुत देर
तक बहुत
मीठी गपशप
भी
एक समय के बाद
क्लेश ही हैं।
आनंद ही आनंद
समझ कर
दस दिन तक के लिए,
पाच सितारा होटल मे
बुक किया गया
सुविधाजनक कमरा
अब, तीन दिन बाद
क्लेश की विषैली
हवा बनकर
दूभर कर रहा जीना