समाज
समाज
समाज के नाम पर रहता था मुझे नाज
भ्रष्टाचारियों के कारणे अब लगने लगी लाज
पंच परमेश्वर भूल गए धर्म नीति की बातें निष्पक्ष न्याय संविधान का होने लगी है कांटे
जिसकी लाठी उसकी भैंस अब होने लगा न्याय
एक तरफा पक्षपात कर कुत्ता सिंहन चले ब्याय
शर्मिंदगी अब आने लगी शर्मिंदा हूं मैं आज
भ्रष्टाचारियों के कारण अब लगने लगी लाज
निज स्वार्थ के कारणे समाज बना है ढाल
कर संगठन मजबूत एक लूटने लगा माल शर्म अब आने लगी शर्मिंदा हूं मैं आज
समाज के नाम पर रहता था मुझे नाज
बड़ को पीपल कहें पीपल होने लगीआज
सत्य को झुठलाया गया ,झूठ को चढी़ ताज कवि हृदय करने लगे,, अब पंचों को फटकार
सत्य बताइए संत जन क्या है, पूर्वज संस्कार ।।
कवि डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग