$ समरसता की चाह $
समरसता हो अगर देश में,जाति-पाँति का भेद नहीं।
मिल जुलकर रहें किसी को हो किसी से बैर नहीं।।
पा प्रज्ञान रविदास का, हम शत् प्रसून खिलाएँगे।
ऊँच-नीच का भेद परन्तु, तनिक नहीं सह पाएँगे।।
जातिवाद जहरीली प्रथा अब हम समूल मिटा देंगे ।
अनुयायी बाबा साहब के सब मिल धूल चटा देंगे।।
हटा समाज की गंदगी अब हम खुशबू फैला देंगे।
मिला हथियार कलम हमें, अब तूली-तीर चला देंगे।।
पड़ी ज़रूरत अगर हमें, तो हम शमशीर उठा लेंगे ।
वंशज संत रविदास के, हम ज्ञानी धूल चटा देंगे।।
सिर्फ़ समरसता चाहें हम, हमें किसी से बैर नहीं ।
लेकिन अब कोई ऊँच रहा, मन में कोई नीच रहा।
लेना समझ फिर यहाँ ‘मयंक’ उसकी कोई खैर नहीं ।।
कवि- श्री के. आर. परमाल “मयंक”