समय की सीमा से भी आगे….
समय की सीमा से भी आगे
चाँद-सितारों से भी आगे
जहाँ और भी होते हैं क्या …
सपनों के जहाँ से भी आगे
चक्षु भी कहीं सोते हैं क्या
सौंदर्य का दर्पण कितना सुंदर
मधुर-मस्त है कितना सुंदर
दाँत कथा की परियों के साथ
राज कुँवर भी होते हैं क्या…
सौंदर्य तो मन के भीतर समाया
नयन मूँद मुझे समझाया…
समय की सीमा से भी आगे
जहाँ और भी होते हैं क्या …
-राजेश्वर