समय की पुकार
कल मैने देखा ! एक बंदर के हाथ लगी
मोतियों की एक माला !
जिसे तोड़़-तोड़कर उसने अपनी
बुद्धि से बिखेर डाला ,
उसे पता नही कि मोती चुनने ,
माला बनाने में कितना श्रम लगता है ,
उसे तोड़ने में तो पल भर
का ही समय लगता है ,
जो मोतियाँ टूटकर बिखर जातीं है ,
वो फिर मिल नही पातीं हैं ,
इस प्रकार कुछ राजनीतिक बन्दर ,
देश के सहअस्तित्व रूपी माला को
तोड़कर बिखराने मे लगे हुए हैं ,
अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए
देश में विभिन्न जाति एवं संप्रदायों के परस्पर
सौहार्द को विखंडित करने में लगे हुए है ,
उन्हें यह पता नही यह सौहार्द ही
देश की अखंडता की नींव है ,
जिसको हिलाने से देश के अस्तित्व की
यह इमारत ध्वस्त होकर बिखर जायेगी ,
देश के टुकड़े -टुकडे होगें फिर
विदेशी ताकतें सक्रिय होगीं ,
और देश को आर्थिक एवं वैचारिक
गुलाम बनाकर जनता का शोषण करेंगी ,
देश की जनता उठो !
इस दिवास्वप्न से अब जाग जाओ ,
भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों को
पहचान जान जाओ ,
वरना उम्र भर गुलामी के गर्त में
धकेल दिये जाओगे ,
लाख कोशिश करने पर भी
उस अंधकारमय भविष्य के गर्त से
उबर ना पाओगे ।