“समझ का फेर”
“समझ का फेर”
कोई हालात को नहीं समझते,
कोई जज्बात को नहीं समझते।
पढ़ लेते हैं कोई कोरा कागज,
कोई किताब को नहीं समझते।
“समझ का फेर”
कोई हालात को नहीं समझते,
कोई जज्बात को नहीं समझते।
पढ़ लेते हैं कोई कोरा कागज,
कोई किताब को नहीं समझते।