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16 Dec 2019 · 1 min read

समंदर तो नहीं

इस तरह न रूठा कर मेरा दूसरा मुकद्दर तो नहीं
दायरे की दरिया हूं सुख जाऊंगा कोई समंदर तो नहीं।

जिया नाराजगी में समझ खो देती है कफ़न मांगती है
पिया तेरे दामन ढकने तक तो हूं पर वो चादर तो नहीं।

कुछ बाते समझ नहीं पाता तेरे रूठने पर भी
ख्वाहिशें पिया – सी किया करो हम कोई सिकंदर तो नहीं।

गलियों – गलियों से गांव बनाया है तेरे मन में
यूं गुजर जाऊं वो सीधी सड़क का शहर तो नहीं।

रूठना तो कुछ समय के लिए, सिर्फ दरिया हूं
समंदर से कैसे टकराऊ नहर हूं,कोई कहर तो नहीं।

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