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9 Sep 2017 · 1 min read

सब राही अपनी राह गए !

सब राही अपनी राह गए
सब राही अपनी राह गए क्यों अपलक नैन निहार रहे,
नयनो में मृदु अमृत रस भर जन जन का पंथ पखार रहे,
कब कौन किसे मिल पाता है सब तो विधना का नाता है,
कुछ दूर गए कुछ पास गए,
सब राही अपनी राह गए क्यों अपलक नैन निहार रहे
सबका सपना साकार रहे सबकी अभिलाषा हो पूरी
सबको हृदयंगम करनी है थोड़ी सी जो भी है दूरी,
सबकी अपनी है मजबूरी,
कुछ आस लिए हर बार रहे
सब राही अपनी राह गए क्यों अपलक नैन निहार रहे
राहों का क्या रह जाती हैं अन्तः पीड़ा सह जाती हैं
सब की यात्रा करती पूरी
अनगिनत राह को पथिक मिले,
संख्या होती निशि दिन दूनी
पर राह पड़ी राह जाती है जाने क्यों सूनी की सूनी
फिर भी राहों को है सुकून सबका सपना साकार किया
सबको जीवन अमृत घट दे
अपना सर्वस्व निसार किया
कुछ जीत गए कुछ हार गए
कुछ जीवन धन कर पार गए कुछ बापस गेह निहार रहे
सब राही अपनी राह गए क्यों अपलक नैन निहार रहे

Language: Hindi
1 Like · 224 Views
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