सब कुर्सी का खेल है
सब कुर्सी का खेल है,
गांव से लेके दिल्ली तक,
इतनी जो रेलमपेल है।
सब कुर्सी का खेल है . . . . . .
अच्छाई और ईमानदारी का चादर ओढ़े,
कई कुटिल धुर्त राजनीति से नाता जोड़े।
देश डुबे या बिके टिकरा किसी पर भी फोड़े।
देश की राजनीति को अपने मन मुताबिक मोड़े।
किसी की आजादी से लेकर बर्बादी तक
किसी को भेजा जेल है।
सब कुर्सी का खेल है . . . . . .
चमचागिरी व झूठ में माहिर होगा।
तोड़-फोड़ कर प्रदर्शन करेगा।
जाति धर्म का खेल खेलेगा।
वही कुर्सी का दर्शन करेगा।
धार्मिक उन्माद से लेके पाप तक
बेमेल मतो का मेल है।
सब कुर्सी का खेल है . . . . . .
जिसके हाथ में कुर्सी है,
चलती मनमानी उसकी है।
असंभव को भी संभव कर दे,
शासन प्रशासन भी तो उसकी है।
भ्रष्टाचारी कालाबाजारी गैंगस्टर से तस्कर तक,
छोटी मछली बड़ी तो व्हेल है।
सब कुर्सी का खेल है . . . . . .