सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
मैं जो कहता हूॅ॑ खुदा कसम मान जाओगे
ये जिंदगी है तुम्हारी सुनो एक अबुझ पहेली
आसान दिखती है मगर नहीं आसान पाओगे—सब्र.
न तेरा दिल होगा न जिस्म सब ये राख होगी
तूॅ॑ जिस सूरत पे इतराता है वो भी खाक होगी
वक्त गुजरने दो ना खुद को हीं पहचान पाओगे—सब्र
ये जागीर ये दौलत कौन कहाॅ॑ पर ले जाएगा
तूॅ॑ खाली हाथ आया यूॅ॑ ही खाली हाथ जाएगा
जिस दिन जाओगे श्मशान खुद ही मान जाओगे–सब्र
ये रिश्तों की डोर है जो बहुत भरमाएगी
तूॅ॑ जिसे मोहब्बत समझता ना साथ जाएगी
बेनाम आए थे जमाने में और गुमनाम जाओगे—सब्र
‘V9द’ बातें जमाने की तुमको रूलाएंगी
कुछ तो मिठी यादें रख जो जख्म सहलाएंगी
खुद में जीना सीख लोगे तो ही खुदा को पाओगे–सब्र