सफ़र का अंत
तुमने कहा था कि तुम मुझसे बेइंतहा प्रेम करती हो
तब तुम्हारी आंखें नम थी, गला भी भर आया था
तुमने कहा था कि तुम मुझसे अनंत प्रेम करती हो
तो उस पल तुम्हारी नजरें नीचे की ओर झुकी हुई थी
और सांस तेजी से चल रही थी
तुमने कहा था कि तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो
लेकिन अफसोस तुमने ऐसा कभी किया ही नहीं
फिर मैने तुमसे कहा था कि मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं
और मैंने तुम्हारी आंखों में झांककर
ठंडी ठंडी आहें भरी थी
तब मैं भी जानता था
और तुम भी जानती थी
कि उनमें से कम से कम एक सच तो जरूर था
क्योंकि अगर दोनों ही बातें सच होती
तो आज जिस मोड़ पर हम खड़े हैं
शायद वहां खड़े ना होते
और जिन सवालों के जवाब आज भी अधूरे हैं
आज वही हमसे सवाल नहीं कर रहे होते
सच तो यह है कि हमारा सफर यहीं खत्म होता है
तुम खुश रहो अपनी दुनिया में
और मैं भी निकलता हूं
बिखरी हुई खुशियों को एक बार फिर से समेटने