तौर – तरीके
आज बरस दर बरस
तुम्हारे और मेरे बीच
बढ़ते रहे निरंतर फासले
और चौड़ी होती गई खाई
फासले तो बढ़ने ही थे
क्योंकि
तुम्हारी हर राह जुदा थी
हर चाह जुदा थी
अलग थे तुम्हारे चयन के तौर तरीके
और गज़ब का था तुम्हारा व्यवसाय प्रबंधन
तुम्हारे व्यवसाय प्रबंधन का
मैं क ख ग भी सीख न पाया
क्योंकि सीधी सरल राहों का आदी
मैं बचता रहा टेढ़ी पथरीली राहों से
और इसीलिए सफलताओं का लबादा
ओढ़ने से सदा वंचित रह गया।
और तुम सफलताओं के लबादे की
परत दर परत ओढ़
चढ़ते रहे अपने मुकम्मल मुकाम पर
और मैं
संतुष्टि भरी कुंठित व्यग्रता लिए
आज भी जहां का तहां खड़ा हूं ।
अशोक सोनी
भिलाई ।