सफलता की कुंजी (पार्ट -1)
सफलता की कुंजी
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परिश्रम ही सफ़लता की कुंजी है,
क्या ये कथन आपको पूर्ण रूपेण सही लगता?
नहीं मुझे तो ये तर्कसंगत नहीं जान पड़ता,
परिश्रम क्यों करे, कैसे करें,
जिसे इसकी भी कोई जानकारी नहीं,
वो परिश्रम करे तो, क्यों करे ?
यदि हम सारे बुरे व्यसनों के साथ,
अनवरत परिश्रम करते जाएं तो,
हमें सफलता हाथ लग सकती क्या?
हम तो जानते कि ईश्वर की मर्जी के बिना,
एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है,
फिर कशमकश क्यों?
हम क्यों कर्म करें ?
कर्म तो वो खुद करता है,
हमारा प्रयास तो बस उसे प्राप्त कर लेना है ,
बाकि का सारा काम तो वो खुद कर लेगा।
तुलसीदास ने रामायण में यूँ तो नहीं लिखा है,
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बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी॥
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मतलब साफ है कि यदि मुझे,
सफलता प्राप्त करनी है तो ,
आत्म ज्ञान ही हमारा,
प्रथम ध्येय होना चाहिए।
विराट सत्ता को जाने बिना, समझे बिना,
हम सफलता के अर्थ को नहीं पहचान सकते।
जब हम ब्रह्म को समझ लेंगे,
तो ब्रह्म अपना कार्य खुद करने लगेगा ,
और उसे प्राप्त करने के लिए,
सबसे आसान उपाय है,
चाहतो से भरी मन की चंचलता को,
शुन्य पर ले जाना?
और ये शून्यता ही सफलता की कुंजी है।
जब हम मन की गति को,
शून्य पर ले आयेंगे तो,
तन्मयता प्राप्ति के साथ,
सारे व्यसनों से भी मुक्ति पा लेंगे।
सफलता खुद-ब-खुद ,
हमारे कदमों में दौरी चली आएगी।
और यदि,
मन की चंचल गति और बुरे व्यसनों के संग,
परिश्रम कर सफलता मिल भी गई,
तो वो किस काम की,
हमनें तो मंजिल के शिखर पर पहुंचे,
मानव को भी आत्महंता बनते देखा है।
अंतिम निष्कर्ष यह है कि _
शुन्य ही विशाल है ,
जहाँ से ऊर्जा का स्रोत प्रस्फुटित होता है,
मतलब शून्यता ही सफलता की कुंजी है।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०२ /०८/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201