सफर
जब माँ की कोख से मै जन्मा
तो सफर सफर मे चल दिया
इक सफर था जब माँ ने पाला,
बचपन खुशियो से भर दिया
जब पिता का साया सर पर था,
सब मुश्किलों से लड़ लिया
जब सफर था पढना बढने का,
मैने मन लगाकर पढ़ लिया
लेकिन पढ़ने से क्या हुआ
मुझे गद्दार ने जकड़ लिया
यहाँ माँ को बेचने वाले जो
जिनने जेवो को भर लिया
क्यो सत्य को सुनकर चिढ़ते हो
क्या राजनीति को पढ़ लिया
तू सत्य कवि गर लेखक है
तुझे राजनीति से मतलब क्या
साहित्य है क्या ,क्या राजनीति
तूने किसको है पकड़ लिया
✍कृष्णकांत गुर्जर