सफर मोहब्बत का
चलो फिर किस्सा मोहब्बत का सुनाते है।
पुरानी इश्क की गली से घूम आते है।।
ठिठुरते बैठना दहलीज, सर्द रातों में।
पल इंतजा के जहाँ अदब से निभाते है।।
मायूश एक पल भी न दिल हुआ हमारा।
ना मिल पाते तो कल की खबर भिजाते है।।
प्रेम, विरह की आग में तड़पते हुए मिलते।
मिलन की ले दुआ मन्दिर दिया जलाते है।।
आस्था मन इश्क से बढ़ कुछ भी नहीं जहाँ।
मूरत इश्क पर श्रद्धा से सर झुकाते है।।
खोए हुए प्यार पर गम नही करो यारों।
दर्शन , बंद आँखों से दिल में कराते है।।
मुराद पूरी होती हर, इश्क की गली में।
सच्चे जोड़े इश्क के “जय” खुदा बनाते है।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म. प्र.