सन दो हज़ार बीस और दो हज़ार इक्कीस
दो हज़ार सन बीस मनाया
तब कुछ हमको नज़र न आया
सूखी सूखी होगी होली
रूखी रूखी होगी बोली
मुँह को अपने ढकना होगा
दो गज अंतर रखना होगा
कहीं किसी का घर छूटेगा
अपने खोकर दिल टूटेगा
भूखे रहकर चलना होगा
जाने क्या-क्या सहना होगा
रब के घर भी नहीं खुलेंगे
विद्या मंदिर बन्द रहेंगे
गूँगी सी रिमझिम सावन की
रीत नहीं रक्षाबंधन की
श्राद्ध भी नहीं हो पायेंगे
कन्या पूजन रह जायेंगे
नहीं दहन रावण का होगा
रूप अलग जीवन का होगा
तबियत होगी ढीली ढाली
फीकी सी होगी दीवाली
नहीं गले भी मिलना होगा
बन्द घरों में रहना होगा
मुश्किल में ये साल बिताया
क्या-क्या हमने नहीं गवाया
बहुत हो गया अब हे भगवन
तोड़ो ये कोरोना बंधन
कोरोना की मिले दवाई
नये साल की यही बधाई
दो हज़ार इक्कीस मनायें
फिर पहले से नाचें गायें
15-11-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद