सनातन
है जिसका कोई आदि नही
है जिसका कोई अंत नही
जो सदैव था जो सदैव है
और सदैव रहने वाला है
जो सत्य सरलतम शाश्वत है
जो मार्ग दिखाने वाला है।
जो प्रकाश का पोषक है
जो अंधकार का शोषक है
जो भाष्य भी और भाषित भी
जो शासक भी और शासित भी।
वह दृष्टि स्वयं वह द्रष्टा भी
वह सृष्टि स्वयं वह स्रष्टा भी
जो अच्छेद्य अदाह्य अक्लेद्य अशोष्य
और नित्य निरंतर आतन है
वह अचल सर्वगत व्यापक है
वह शाश्वत सत्य ‘सनातन’ है।