सत्य
कौन है वो रचा सृष्टि को जिसने, अनवरत नियमों में बांधा किसने
कौन है वो क्या उसकी सच्चाई ,क्या कभी किसी को समझ है आई
मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है प्राणी, भाषा लिपि जिसकी है वाणी
वुद्धि विवेक से जिसे सजाया, अपना वोध भी उसे कराया
वेदों में अंकित करवाया , कथा पुराणों से समझाया
स्मृतियों में उल्लेख यही है, तेरा रचनाकार वही है
क्यों मानव भू पर तू आया,क्यों रचयिता को है भुलाया
अंश उसी का तन में हमारे, भटका फिर क्यों द्वारे द्वारे
काम क्रोध मद लोभ बनाये, थे आवश्यक उपयोग कराये
दुरूपयोग कर कर्ता बन बैठा, दंभ पाल तनकर तू बैठा
सत्य भुलाया मन भरमाया, जगमग को ही फिर अपनाया
जीवन का उद्देश्य भुलाया, उलझ गया तू फिर मोह माया
धन यश की लोलुप गहराई, पद प्रतिष्ठा की चतुराई
गृह क्लेश और लड़ाई , जबसे ईश प्रीत बिसराई
वाणी व्यवहार कर्म की गाथा, पाप पुन्य सब इसके पाठा
मन वचन करम की भाषा, यही धर्म अधर्म परिभाषा
नित्य प्रातः जो जन ध्यावे , हाथ जोड़कर उसे बुलावे
सुर सरिता तब शब्द बनाए, मीठी धार रीत निभाए
प्रथम स्थान दे ईश्वर को, स्वीकार करे कर्ता बस उस को
कर्म समर्पण भाव में आये, सदा सत्य मार्ग वो पाए
………………………’ब्रह्म सार’ से उद्य्रत