सत्य यह भी
मैंने सच को सच कहा
झूठ को कहा झूठ
फिर भी निर्दयी दुनिया कह रही
मैं रहा सभी को लूट
सत्य सीधा साधा है
फिर भी इसकी राहों में बाधा हैं
झूठ के होते सिर पैर कहाँ
इसलिए पर्यावरण में तैर रहा
लेकर अनचाही अनगरल बातें
सोचो इनको कौन फैलाते
सच के पाँव हैं फिर भी
भटकता फिरता है
दुहाई देता फिरता है
दुनिया कितनी अड़ती है
हर बार सफाई उसे ही देनी पड़ती है
कि मैं सत्य हूँ
कभी झूठ ने कहा है कि
मैं झूठ हूँ
अगर मैं चींख चींख कर भी कहूँ
मैं सत्य हूँ मैं सत्य हूँ
तो भी विश्वास नहीं होता
वजूद को खोता रोता
उधर झूठ तरह तरह से अपनी फसलें बोता
एक झूठ के सहारे जीवन यापन होता है
रहने भी दो राज तो बस राज होता है
सत्य दर दर की ठोकर देता
कष्ट ,दुख और पीड़ा देता
मीठा सभी को सुहाता
लपर लपर चलती है जीभ
पर
जबसे इसको पता चला है
सत्य कड़वी दवा है
न चखती है न गटकती है
गलती से चख लिया हो तो
एकांत टटोला जाता है
जब राजा के सिर पर सींग उग आता है
तब कहीं पेड़ के खोखल में
सत्य उगला जाता है
सत्यवादी गुमराह हुए
साथ छोड़ रहे हैं पहरुहे
सत्य अब दिखता नहीं
देर तक टिकता नहीं
जनता धर्म उठाने से डरती नहीं
अब माँ पिता पुत्र की सौगंध कोई मायने रखती नहीं
बिसात न्याय की अब काली हो गयी
चेहरे से उठा पर्दा, भीतर जाली हो गयी
माँ की ममता मर गयी
अपनो का अपनत्व गया
सत गया सतीत्व गया
इंसानियत को इंसान
चाय की चुस्कियों में सुड़क सुड़क कर पी गया
सत्य का पर्याय, जल भरा लौटा उठाना
जल भरी अँजुरी
जो देता सत्य को मंजूरी
हालात बदले
बदले भी तो इतने
अब पानी पानी है
माँ सत्य नहीं
पिता सत्य नहीं
पानी भी तो सत्य नहीं
जिसकी पवित्रता की सौगंध खाई जाती थी
सत्य नहीं है गोचर कुछ भी
शक की तलवार तुझ पर भी लटकी है
आ देख जरा तेरी बनायी सृष्टि
कितनी भटकी है
घूँट भर भर अनुभवों की दवा मैंने भी घटकी है
सत्य का यह हाल देख
मैं तुझसे रूठा हूँ
सत्य का यह हाल देख
मैं तुझसे रूठा हूँ
पर आह ! विडम्बना पर आह ! विडम्बना
सबसे बड़ा तो मैं ही झूठा हूँ
सबसे बड़ा तो मैं ही झूठा हूँ ।।
भवानी सिंह “भूधर”
बड़नगर,जयपुर