सत्य तेरी खोंज
मैं ही नहीं चला था राह में तूझें खोजनें
सारा संसार निकल पड़ा है,
है सत्य तु किस राह को निकल पडा़ है।
धरती ढुंढी ,अंबर ढुंढा ,ढुंढा सारा पाताल
क्या इतना पडा़ है जगत में तेरा अकाल।
तूझें धनवानों में ढुंढा, झोंपडी के मकानों में ढुंढा
शिक्षा के गुरुओं में ढुंढा, पंडितों के गुरुर में ढुंढा
ढूंढा अफसरों की ओफिस में ,मजदुर की कोशिश में।
हर जगह छल,कपट और असत्य की राह पड़ी थी,
जानें कौन से सत्य की सबनें राह चुनी थी।
सोचता रह गया “सोनु सुगंध” ये सत्य को कहाँ पाउंगा,
इसकी खोज में जानें कहाँ कहाँ जाउंगा।
फिर भीतर एक आवाज आयी
मैं ही सत्य हुँ मेरे भाई
तेरे भीतर ही मैं समाया हुँ
बस थोड़ा मुश्किल मार्ग अपनाया हुँ।
मुझकों दर दर न खोज
मैं तो मिलता तुझें हर रोज ।
जब खुद तु सत्य किसी से कह जायेगा
वापस सत्य को ही हमेशां पायेगा।
मैं तो ईश्वर की भक्ति में हुँ
तेरे भीतर की शक्ति में हुँ।