सत्य की खोज
प्रत्यक्ष है पर दिखता नहीं
चीखता है पर सुनता नहीं
भान है पर मान नहीं
निशब्द मौन हर कहीं
क्यूँ है सत्य मूक
क्यों नहीं कहता दो टूक
क्या सुनती नहीं नीरवता
क्या दिखती नहीं बर्बरता
पुण्य का चोला पहन पाप
हृदय की पीड़ा और संताप
झंझा में उलझता जीवन
मनुष्य के दुष्कर्म ओर पतन
हर ओर शोषण व उत्पीड़न
नित अस्मिता पर आक्रमण
बेबसी की दुहाई
बस चुप्पी सी छायी
कैसा ये अंधकार कैसी धुन
सब देख समझ सुन
सत्य बैठा है
गूँगा बहरा अंधा बन
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता
स्वरचित