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2 Apr 2024 · 1 min read

सत्य की खोज

प्रत्यक्ष है पर दिखता नहीं
चीखता है पर सुनता नहीं
भान है पर मान नहीं
निशब्द मौन हर कहीं

क्यूँ है सत्य मूक
क्यों नहीं कहता दो टूक
क्या सुनती नहीं नीरवता
क्या दिखती नहीं बर्बरता
पुण्य का चोला पहन पाप
हृदय की पीड़ा और संताप
झंझा में उलझता जीवन
मनुष्य के दुष्कर्म ओर पतन
हर ओर शोषण व उत्पीड़न
नित अस्मिता पर आक्रमण
बेबसी की दुहाई
बस चुप्पी सी छायी

कैसा ये अंधकार कैसी धुन
सब देख समझ सुन
सत्य बैठा है
गूँगा बहरा अंधा बन

रेखा ड्रोलिया
कोलकाता
स्वरचित

4 Likes · 1 Comment · 205 Views
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