सत्य की खोज
“सत्य की खोज”
कलि काल में दुनिया से आज सत्य ही लापता है,
शिष्टाचार सत्कर्मों का किसी को न कोई पता है।
जिसे देखो वही आज बनकर बैठा अधर्म का पुजारी,
बड़े बड़े सब अधर्म करे यही है जनता की लाचारी।
प्रत्येक अंतर्मन में दिखता लालच और आडम्बर,
जाने क्या होगा जगत का चलकर इस डगर।
कोई हवस का भूखा कोई पैसों का प्यासा ,
हर एक आंख में दिखती आज काम पिपासा।
भटक रहा आज का मानव सत्य की खोज में,
नहीं दिखती सच्चाई की झलक किसी के ओज में।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर, रायपुर छत्तीसगढ़