सत्य की खोज
एक राही,
भटकते रहा,
सत्य की खोज में,
रोशनी तले अंधेरा,
राही को समझ नहीं आया ।
सत्य की खोज में,
तीर्थयात्रा जारी रही,
माता–पिता की सेवा सें परे,
अपने ही घर की चारधाम,
राही को समझ नहीं आया ।
खाली हाथ,
पिता स्वयं अभावग्रस्त,
कमी महसूस न होने दिया,
अपने ही ठाट–बाट का राज,
राही को समझ नहीं आया ।
बिमारी हालात,
फिर भी सकुशलता की बात,
माँ करती रही,
सदैव मुस्कुराना खुद की रहस्य,
राही को समझ नही.आया ।
मसान घाट,
मुर्दे की मुखाग्नि,
जलता हुआ शरीर देख,
सत्य क्या है ?
तब राही को समझ में आया ।
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)