सत्य कभी निरभ्र नभ-सा
सत्य कभी निरभ्र नभ-सा,
कभी छुप जाए घन-अंधकारा।
पर नित रहता यह दृगों के सामने,
दिल की आँखों में बसता प्यारा।
सत्य कभी अनवरत प्रकाश सा,
कभी है वो आसमान का ध्रुव तारा।
पर दिखाए अंधकार में रास्ता,
तो कभी भटके हुए को घर ले आता।
सत्य के पथ पर जो भी चलता,
कभी भी उसको भय नहीं सताता।
ज्यों घन छँटते ही दीप्त हो उठे मन,
सत्य का प्रकाश भी त्यों जगमगाता।
झूठ के घने अंधेरे को चीरता,
सत्य का सूरज सदा ही चमकता।
अंधियारे को मिटाता जाता,
सत्य ही ज्ञान का दीप है जलाता।
सत्य का ज्ञान जीवन की दिशा,
और झूठ का साथ है पथ का विघ्न।
सत्य की विजय है सदैव निश्चित,
और झूठ की हार है अपरिहार्य।
इसलिए हे मनुष्य,
सत्य का ही तुम करण करना।
सत्य की ही राह पर चलना,
और झूठ से तुम कोसों दूर रहना।
– सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार