सत्य आराधना
तुम विलय, तुम प्रलय, काल तुम महाकाल हो
आदि तुम अनादि तुम, अनंत और अकाल हो
शांति तुम क्षमा, क्षुधा, अखण्ड, विखंड, शंखनाद
नाद अनहद परिधि क्षितिज, शून्य तुम विशाल हो ||
हो गौर तुम श्याम तुम, दशो दिशा दिगांत हो
अंत तुम आरंभ तुम, तुम्हीं सत्य और भ्रांत हो
शान्त शाश्वत पूर्ण स्वयं, तुम शिखर और प्रखर
त्रिकालदृष्टा धैर्य शेखर, शिव तुम ही विक्रांत हो ||
शब्द में भी क्षत-विक्षत, तुम नक्षत्र क्षर-अक्षर
शक्ति श्रोत ज्ञान पुंज, अविरल तुम ही हर पहर
काम क्रोध लोभ मद, विषय विकार विरक्त तुम
कल्याण मम नाथ तुम, वाणी मेरी हो मेरा स्वर ||
जल-अगन-अनल-पवन, नीलगगन वसुंधरा
सत्य शिवम सुंदरम, सर्वत्र यही बस गूंजता
त्रिनेत्र धारि शंकरा तू, कारपुर गौरम प्रीतमा
तुम्हें नमन मेरे शिवम, ये प्राणी भू पुकारता ||
प्रचण्ड तुम दण्ड तुम, सूर्य कोटि चंद्र धारि
जन्म तुम मृत्यु तुम, सृजन में भी तुम संहारि
सृष्टि की दृष्टि में, दृश्य अदृश्य प्रकृति कुल
निर्माण तुम निर्वाण भी, ज्वाल पुंज शीत वारि ||
भुजंगमणि तुम मणि प्रभा, श्रंगार कुंकुम में रमा
तुम इंगला तुम पिंगला , सुषुम्ना मुझमें बसा
भ्रम कुंज में तू भ्रमण , जगत मोह उलझा सतत
सम्मुख मेरे हे नाथ मम, प्रसन्नता क्षण में समा ||
देव इन्द्र, ऋषि मंत्रणा, सकल सृष्टि करे ये वन्दना
अध्यात्म यक्ष गंधर्व घणा, करें नित्य तेरी उपासना
प्रज्वलित तुमसे अखिल, ब्रह्मांड श्रृंखला ये कुल
पंकज जनक हे नाथ तुम, अर्धांगनी संग प्रार्थना ||
सोम रूप दिव्यता, ओ विकरालता संहार है
ओज से आलोक ओ, प्रेम सृजन विस्तार है
नेत्र नेह सागर अथाह, पूर्ण वत्सल से भरा
कर्म का जो मान दण्ड, इच्छा तेरी उद्धार है ||
भूतकाल, वर्तमान, भविष्य का आधार हो
प्राचीनतम तुम नवीन, विद्या का उदगार हो
ब्रह्मा-विष्णु-महेश तुम, तेंतीस कोटि देवगण
महाविद्या दशम तुम्हीं,पराविद्या का भी सार हो ||
सूक्ष्म तुम अति वृहद, सुगम्य की तुम व्याख्या
लिपि, शिल्प, चित्र लेख में, एक तुम्हारी आख्या
एक से अनेक तुम, हो अनेक में भी एक तुम
वीर्य अंड से मनुष्य, अंत्येष्टि की भी राख्या ||
तुम ध्यान योग मंत्र-तंत्र, यंत्र की हर यंत्रणा
पूजा पाठ विधि प्रसंग, तुम हवन की मंत्रणा
भू अटल-पटल-सकल, मात्र एक व्याप्त तुम
तृप्ति रस असीम तुम, सुधा की हो कामना ||
साधना या अनुष्ठान, कुसुम सुमन पलाश तुम
आहार-विचार, प्रत्याहार यज्ञ का हो स्वांस तुम
इंद्रेश तुम करुणेश तुम, अस्तित्व में प्रवेश हो
शून्य तुम शिखर तुम्हीं, हो शीर्ष का प्रयास तुम ||
अरुणेश श्रेयस रत्न माल, तुम ही पारस नाथ हो
तृण मूल में भी शक्ति तुम, स्फटिक मूल पाथ हो
शिवत्व तुम शिव स्वरूप, शिव कल्याण स्थिति
नमन शिवम चरण अहो, गुंजित कपाल साथ हो ||
प्रेम मिलन का अर्थ तुम, तुम विरह की वेदना
प्रीत-मीत-गीत-रीत, तुम ही भाव की संवेदना
पूज्य मात्र इक श्रेष्ठ तुम, सर्वशक्तिमान नाम तुम
नमः शिवाय शिवाय नमः, प्रातः नित्य ये प्रार्थना ||
सुन्दर शिवत्व भाव तुम, उत्कृष्ट कवि की कल्पना
समग्र-समिष्टि सृष्टि में भी , तेरे रंगो की है अल्पना
मंथन-चिंतन योग सूत्र , शस्त्र-शास्त्र तुझमे निहित
आहुति में आहूत मम, अनुभूति तुम्हारी व्यंजना ||
भक्ति भाव तुमको भजे, शक्ति अनुभूति पाय
नेह पराग का स्पंदन हो, शुभ फल वो पाय
नित्य करे जो प्रार्थना, मन वचन कर्म व्यवहार
दुख कटे, मंगल सजे, अंत श्वांस तोहे मिल जाय।।
…..”ब्रह्म सार से “