” सड़क “
” सड़क ”
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रुकती थकती विश्राम नहीं
बढ़ती और मचलती जाती
अंतहीन अनन्त की ओर
परावार पथिक की चाल
हासिल मंजिल मुझसे क्योंकि
मै जीवन पथ की सड़क हूं ।
उन्मुक्त अन्तरिक्ष का नभचर
ना बंधन अवरोध मेरा
हर ओर कुलाचे भरती
सीधा सपाट ना रूप रेख
चलती बस चलती जाती क्योंकि
मै अम्बर पथ की सड़क हूं ।
भूत भविष्य वर्तमान
अनन्त काल का सार
ना टूटती ना बिखरती
समय का लपेटे चिर
देखती मुस्कुराती बढ़ती क्योंकि
मै समय पथ की सड़क हूं ।
हर पल बदलता स्वरूप
पुष्प पल्लवित मकरंद धुप
उड़ती जाती तितली बनकर
नाचती छिटकी कुंज की ओर
उठती गिरती और संभलती क्योंकि
मै धूप छांव की खड़ी सड़क हूं ।
हाहाकार प्रचण्ड त्रास चहुंओर
त्राहिमाम उठती चीत्कार वीभत्स
उखड़ते द्रूम फटते अंबूद
विक्षिप्त शव प्रकृति का तांडव
टूटती सांसे बिखरती पगडंडियां क्योंकि
मै मलय देश की जीर्ण सड़क हूं ।
गौरव गाथा जंबू द्वीप की
मोती मै राजनीति सीप की
कभी मगध मै कभी इंद्रप्रस्थ
सल्तनत काल से राजपथ
उत्थान पतन की साक्षी क्योंकि
मै दिल्ली के राजपथ की सड़क हूं ।
लुटती अस्मत फटती चीर
वीभत्स आंखे बहती आंखो से पीर
मारती हाथ पांव तमाशा देखती भीड़
वेहआई जमाने की ढकती हिमचीर
संज्ञाशुन्य मानव दोजक समाज क्योंकि
मै पतित पावन सभ्यता की टूटती सड़क हूं।
“””””””””””सत्येन्द्र प्रसाद साह सत्येन्द्र बिहारी”””””””””””