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24 May 2023 · 1 min read

सजदे में झुकते तो हैं सर आज भी, पर मन्नतें मांगीं नहीं जातीं।

सजदे में झुकते तो हैं सर आज भी, पर मन्नतें मांगीं नहीं जातीं,
पलकों पर सपने ठहरे तो हैं, पर नींदों को हैं आँखें ठग जाती।
मंज़िलें आँखें बिछा कर बैठीं हैं, पर राहें वहाँ तक नहीं जातीं,
यादें ज़हन को चुभती तो हैं, पर रिहाई से हैं साँसें घबराती।
ढलता है सूरज समंदर में आज भी, पर वैसी शामें मुझे रास नहीं आतीं,
लकीरों में बची तेरी खुशबू तो है, पर वो रेत सी हाथों से है फिसल जाती।
आवाजें कानों से टकराती रहती है, पर वो अब बातें कहाँ हैं गहराती,
सितारों से रौशन जहां तो है, पर मुहब्बत ग़र्दिशों में है भटकाती।
कदम सफर में मशरूफ रहते हैं, पर दहलीज़ घर की अब नहीं आती,
सरायों में टूटे झरोख़े तो हैं, पर आँगन की अठखेलियां मन को तरसाती।
भीड़ में गुम हूँ मैं आज भी, पर ये तन्हाई मुक्क़दर से नहीं जाती,
साहिलों पर लिखा तेरा नाम तो है, पर लहरों को ये ख़ुशी भी कहाँ है भाती।

1 Like · 420 Views
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