क्या भरोसा किया जाए जमाने पर
क्या भरोसा किया जाए जमाने पर
सब ने मजबूर को रक्खा ठिकाने पर
आ गए सर फिरों के हम निशाने पर
बेवजह अड़ गए थे सच बताने पर
जुल्म की इन्तिहा है आज होने दो
एक दिन आएंगे ये भी निशाने पर
रौशनी ने हारना सीखा नहीं है
सब तुले हैं चराग़ों को बुझाने पर
इस कदर भी सखी बनकर न इतराओ
नाम सबका लिखा है दाने-दाने पर
खुद बनाया था रिश्ता शौक से उसने
अब लगा है तअल्लुक़ खुद मिटाने पर
साथ दिल से निभाया था सदा ‘अरशद’
टूट कर रह गए हैं आजमाने पर