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23 Sep 2020 · 1 min read

— सच की बुनियाद —

सच की बुनियाद ही है
जो धरती रुकी हुई है
वरना झूठ ने तो अब तक
यहाँ से रूखसत कर दिआ होता

हर बात अगर झूठ से चलती
तो जमाना गुजर गया होता
सच का दामन थामा है, तभी तो
यहाँ जीना सब का सुकून वाला है

झूठ के पैर नहीं होते
झूठ का कोई लिबास नहीं होता
यह बेरंग सा होता है
तभी तो कहीं रूक नहीं पाता

सच कहने , सच सुनाने वाले
चाह कर भी काम मिलते हैं
उनके घर पर ताले नहीं होते
झूठ के जैसे ढंग जो नहीं होते

सच की जुबान एक जगह रूक जाती है
झूठ की जुबान अटक जाती है
कुछ दिमाग से बदलने को
झूठ की जुबान लड़खड़ा जाती है

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
1 Comment · 388 Views
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