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21 Aug 2018 · 1 min read

“सच की तलाश ज़ारी रक्खो लोगों”

मन्ज़िल नहीं आसां अभी सच की तलाश ज़ारी रक्खो लोगों
ज़ुबा कड़वी हो ,मग़र लफ्ज़ों में मिठास ज़ारी रक्खो लोगों

देखने के लिए नज़र चाहिए, अभी इतना भी अंधेरा नहीं
आँखें खुली रक्खो हरदम ,सीने में आग ज़ारी रक्खो लोगों

वो अब्र कब बरस पड़े ज़मीं पर,अंदाज़ा लगाना मुश्किल है
तोड़ो ना कोई ख़ाब अभी, लबों पर प्यास ज़ारी रक्खो लोगों

वाज़िब नहीं है, इस जहां में हर अफ़साने को सच समझना
नहीं मिलता ग़र मुनासिब जवाब,सवालात ज़ारी रक्खो लोगों

भोले ना बनों,हर बात अमलन तुम्हें राह दिखा सकती है
ना जाति देखों ना मज़हब, सच की आस ज़ारी रक्खो लोगों

सब मुसाफ़िर हैं यहाँ इक़ ही मन्ज़िल के,दुज़ा कोई छोर नहीं
कभी ना उघाड़ो बेअस्बाब,जिस्म पर लिबास ज़ारी रक्खो लोगों

__अजय “अग्यार

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