सच की खोज
कल रात सपने में मैंने एक बालक को देखा उससे पूछा कहां जा रहा है? उसने कहा मैं सच की खोज में निकला हूं। क्या तुम बता सकते हो कहां मिल सकता है ? क्या तुमने उसे देखा देखा है ? मैंने कहा तुम जो देखते हो जो तुम सुनते हो जो तुम महसूस करते हो वह भी सच नहीं होता । सच तो छुपा हुआ होता है। उसको खोजने के लिए खोजी नज़र चाहिए। हमें जो धनवान दिखते हैं वास्तव में गरीब मजदूरों के पसीना बहाने पर कमाई दौलत से अमीर हुए है। यह सच है । देश में इतनी प्रगति होने पर भी अभी तक गरीब जनता भूखे पेट सोती है यह सच है । लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। अदालतों में गरीब को न्याय नहीं मिलता वहां पर धनवान लोगों के सुनवाई होती है । गरीब जिंदगी भर न्याय की तलाश में भटकता रहता है यह सच है । नेता गरीबों की आड़ में अपना पेट भर रहे हैं यह सच है । गरीब किसान और भी गरीब होता जा रहा है ।और यहां तक कि बेबसी में आत्महत्या तक करने के लिये मजबूर हो रहा है यह सच है । बड़े शहर और कस्बों में विकास हुआ है जबकि गांवों तक पहुँच रोड भी नहीं बनी है । और कागजों में निर्माण बताकर सरकारी खजाने को लूटा जा रहा है यह सच है। चिकित्सा और शिक्षा जो जनसेवा के लिए कटिबद्ध होना चाहिए पैसा कमाने की दुकान बन चुके हैं यह सच है । नेता जनता का उद्धार करने की बजाय खुद का उद्धार करने में लगे हैं यह सच है । धर्म सद्भाव और सहिष्णुता फैलाने के बजाय धर्मांधता और आतंक की पाठशाला बन चुके है यह सच है। शासन तंत्र लोगों की भलाई के बजाय भ्रष्टाचार कर लूटने में लगा है । अवसरवादी तत्व लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं यह सच है। इसलिए हे बालक सच को तलाशने की बजाए वास्तविकता को समझो और उसके अनुरूप अपना आचरण करो । क्योंकि जैसे-जैसे आगे बढ़ोगे तुम्हें कटु सत्य का सामना करना पड़ेगा इसी उधेड़बुन में पूरा जीवन निकल जाएगा।