सच्चे होकर भी हम हारे हैं
गहरी खाई वाले किनारे हैं
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
ढिठाई से झूठ बोल जाते हैं
सबको एक सा तोल जातें हैं
जुबां ऐसी की क्या कहा जाए
सबके मन में ज़हर घोल जातें हैं
गर्दिश में लगते सितारे हैं
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
कोशिश नाकाम हो गयी है
वो गली बदनाम हो गई है
एक – एक करके दुश्मन हुए
बदले की भावना आम हो गई है
खौलते दिख रहे फब्बारे है
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
तु सबको पालने वाला है
सबमें जान डालने वाला है
समय को समय से बदलकर
मौत के मुंह से निकालने वाला है
दोनों हाथ फैलाये तेरे द्वारे है
सच्चे होकर भी हम हारे हैं।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर
उत्तर प्रदेश