सगीर की ग़ज़ल
तेरी फुरक़त में शब गुजारी गई।
दिल की फिर भी ना बेक़रारी गई।
तेरा कुछ भी नही गया जा़लिम।
प्यार में नींद तो हमारी गई।
फेर लेते हैं वो नज़र अब तो।
जिनकी नज़रें तलक उतारी गई।
“सगी़र” कि़स्मत संवारते कैसे।
ज़ुल्फ जिनसे नहीं संवारी गई।
तेरी फुरक़त में शब गुजारी गई।
दिल की फिर भी ना बेक़रारी गई।
तेरा कुछ भी नही गया जा़लिम।
प्यार में नींद तो हमारी गई।
फेर लेते हैं वो नज़र अब तो।
जिनकी नज़रें तलक उतारी गई।
“सगी़र” कि़स्मत संवारते कैसे।
ज़ुल्फ जिनसे नहीं संवारी गई।