सख्त लगता है
वो बूढ़ा है बहुत नाजुक फिर भी सख्त लगता है
पराये घर को अपनाने में काफी वक़्त लगता है।
जिसे देखो वही मेरी मोहब्बत पे नजर रखता है
लबों से मुस्कुराता दिल नजर से पस्त लगता है।
मुझे मेरी कहानी से कोई शिकवा नही लेकिन
जलाकर तू मेरे घर को बड़ा मदमस्त लगता है।
आज पैगाम क्या आया रूह ने जिस्म को तोड़ा
तेरे बेटे का है जो कल बहा है रक्त लगता है।
पहले से मुकर्रर है वक़्ते महफ़िल जमाने की
तेरा आना ही मुझे अक्सर बड़ा बेवक्त लगता है।
न वो मेरा है न होने की कोई उम्मीद है बाकी
फिर भी दिल मेरा उसके घर मे जब्त लगता है।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’