Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Sep 2022 · 6 min read

*सूझबूझ के धनी : हमारे बाबा जी लाला भिकारी लाल सर्राफ* (संस्मरण)

सूझबूझ के धनी : हमारे बाबा जी लाला भिकारी लाल सर्राफ (संस्मरण)
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
हमारे बाबा साहब लाला भिकारी लाल सर्राफ कहानियाँ बहुत अच्छी तरह से सुनाते थे । रात को दुकान से आ कर भोजन आदि से निवृत्त होकर हम बच्चे उनके पास बैठ जाते थे और तब वह बिस्तर पर बैठ कर कहानी सुनाना शुरू करते थे ।
कहानी में उत्सुकता का महत्व वह भली भाँति जानते थे । इसलिए कहानी में अर्ध-विराम किस जगह देना है ,यह उन्हें बखूबी पता था । अनायास किसी मोड़ पर वह थोड़ा ठहरते थे और तब सब बच्चे पूछते थे कि उसके बाद क्या हुआ ? यह मोड़ कहानी का प्राण होता था । वैसे तो एक-एक वाक्य में इतना रस लेकर वह कहानी सुनाते थे कि सुनते-सुनते हम बच्चे कहानी के पात्रों में डूब जाते थे । कहानी का परिदृश्य हमारी आँखों के सामने तैरने लगता था और महसूस होता था कि मानो हम एक अलग ही दुनिया में चले गए हैं । उनकी कहानियाँ सामाजिक संदर्भों को लेकर बुनी हुई होती थीं। उसमें सीधे-सीधे कोई संदेश सुना कर कहानी की रोचकता को सीमित नहीं किया जाता था अपितु किस्सागोई को ही प्रधानता मिलती थी । कुछ सामाजिक संदेश अगर उसमें होते भी होंगे तो मुझे इस समय याद नहीं आ रहे। मैं तो उनकी किस्सागोई की कला पर ही मुग्ध हूँ और उसी का स्मरण कर रहा हूँ।

हमारा घर अलग होने के कारण बहुत ज्यादा देर रात तक कहानी सुनना मेरे भाग्य में नहीं लिखा था । बहुत ज्यादा कहानियाँ भी इसी लिए मेरे हिस्से में नहीं आईं। कभी-कभी उनके कथा-रस का आनंद मुझे मिल जाता था। उनकी आवाज में करारापन था। भारी-भरकम गूँज पैदा होती थी । एक-एक शब्द किस प्रकार से शुद्धता-पूर्वक उच्चारण किया जाए ,इसकी कला का उन्हें अच्छा ज्ञान था । कहानी कहने के लिए बनी होती है ,यह उनसे कहानी सुनकर हमने सीखा। बाद में लिखी हुई कहानियाँ पढ़ने का अवसर मिला लेकिन जो बात कहानी सुनने में आती थी ,उसका आनंद पढ़ने में कहां ?
जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तब संभव था कि उनसे कुछ ज्यादा कहानियाँ सुन पाने का सुयोग मिल जाता । मगर उस समय दुर्भाग्य से बाबा साहब को ब्रेन-अटैक या फालिज अर्थात लकवा (पैरालिसिस) पड़ गया । जिसके परिणाम स्वरूप उनकी बोल सकने की क्षमता जाती रही । फिर कहानियाँ कह पाने की तो बात ही दूर रही ,साधारण बोलचाल के शब्दों का उच्चारण भी उनके लिए असंभव हो गया । कंगाली में आटा गीला वाली कहावत यह चरितार्थ हो गई कि बोलने के साथ-साथ लिखने की उनकी शक्ति भी नहीं रही । मस्तिष्क-आघात में न जाने कौन सी नस ने काम करना बंद किया कि वाणी के साथ-साथ हाथ से लिखने का ज्ञान भी समाप्त हो गया । फिर वह देखने में स्वस्थ तथा पहले के समान ही जान पड़ते थे लेकिन बीमारी ने किस प्रकार से उनकी भीतरी शक्ति को छीन लिया है ,यह बात एकाएक उन्हें देखकर कोई नहीं समझ सकता था।

वह अपने समय के प्रतिभाशाली, समझदार तथा समाज का नेतृत्व करने वाले अग्रणी व्यक्ति थे । उनकी राय ली जाती थी तथा गंभीरता के साथ उनके विचारों को सुना जाता था । उनकी सलाह पर अमल करके समाज में लोग लाभान्वित होते थे। वह विचारों में गंभीरता लिए हुए व्यक्ति थे । व्यवहार में उच्च कोटि के अनुशासन का पालन करते थे । विशुद्ध शाकाहारी भोजन जैसा कि उस समय लगभग सभी अग्रवाल परिवारों में प्रचलन था ,वह भी ग्रहण करते थे ।

रामपुर शहर में उनका सर्राफे का प्रथम पंक्ति का व्यवसाय था । रियासत में जब नवाब साहब का दरबार लगता था ,तब उसमें उन्हें भी आमंत्रित किया जाता था । इस तरह दरबार के तौर-तरीकों तथा व्यवहार में किस प्रकार से मर्यादा में रहते हुए नवाब साहब से शिष्टाचार निभाया जाता है ,इसकी जानकारी उन्हें खूब हो गई थी । जब बाद में आजादी मिलने पर रियासत का विलीनीकरण हुआ और नवाबी शासन समाप्त हो गया तब 1950 के दशक में नवाब साहब ने अपने शाही महल “कोठी खास बाग” की बहुत अधिक संख्या में अनुपयोगी वस्तुओं को बेचने का निर्णय लिया। इसमें चाँदी के बर्तन तथा शो-पीस के साथ-साथ लकड़ी ,काँच तथा बहुमूल्य पत्थरों की बनी हुई मेज, कुर्सी,अलमारी आदि शामिल थे । अपने शिष्टाचार के कारण बाबा साहब ने नवाब साहब की निकटता प्राप्त की तथा अन्य प्रतिद्वंदी खरीदारों को पीछे छोड़ते हुए काफी संख्या में यह बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने में सफलता प्राप्त कर ली । यह सभी वस्तुएँ कला के उत्कृष्ट नमूने थे ।

जब बाबा साहब ने एक-एक आइटम को प्रदर्शनी लगाकर सार्वजनिक रूप से बेचा ,तब रामपुर के उच्च तथा उच्च-मध्यम वर्ग के लोगों ने उस में गहरी दिलचस्पी ली और वह वस्तुएँ उनके घरों की शोभा बन गईं। इसमें अलमारी ,मेजें आदि मुख्य वस्तुएँ थीं। इनकी लकड़ी ,पत्थर की क्वालिटी तथा इन पर सुंदर कारीगरी देखते ही बनती थी। जिसके घर में यह वस्तु पहुँच गई ,वहाँ अपनी अद्वितीय कलात्मकता को अलग ही प्रदर्शित करती रही । वास्तव में यह वस्तुएँ नवाब साहब के लिए भले ही अनुपयोगी तथा अतिरिक्त रूप से बोझप्रद हों, लेकिन वास्तविकता यह थी कि इतनी उच्च कोटि की बेहतरीन कारीगरी आम जनता ने शायद ही कभी कहीं देखी हो । यह सचमुच राजसी वैभव को दर्शाने वाली कलाकृतियाँ थीं। इन्हें मुँहमाँगे दामों पर लोगों द्वारा संभवतः खरीदा गया होगा। ऐसी-ऐसी दरियाँ थीं, जो अपनी मोटाई तथा गुदगुदेपन में कालीनों को मात करने वाली थीं। ऐसे-ऐसे शामियाने थे ,जो अनुपम कसीदाकारी से सुसज्जित थे तथा विवाह में दूल्हे – दुल्हन के ऊपर सुशोभित करने के योग्य थे।
चाँदी के बर्तनों तथा अद्भुत शो-पीस आइटमों का तो कहना ही क्या था ! वह वस्तुतः शताब्दियों तक संग्रह करने के योग्य थे । लेकिन अपनी हैसियत के मुताबिक ही कोई बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रह कर सकता है । नवाब साहब को अपना माल बेचने की जल्दी थी तथा ऐसे में एक ही तरीका था कि चाँदी के सामान को गलवा कर उनकी 99% शुद्धता की “थकिया” बना ली जाए तथा बाहर की मंडी में जाकर बेचकर रुपए कर लिए जाएँ ताकि उन रुपयों से फिर नवाब साहब से सामान खरीदा जा सके । रामपुर में खरीदे गए सामान को गलाकर उनकी “शुद्ध चाँदी की थकिए” बाबा साहब तैयार करवाते थे और उन्हें दिल्ली बेच कर आते थे।

नवाबी शान-शौकत की रहस्यात्मकता का कोई जोड़ नहीं था । कौन सोच सकता था कि चाँदी के बर्तनों में सोने का मिश्रण भी होगा ? दूसरी बार जब बाबा साहब दिल्ली में चाँदी बेचने गए तो धूम मच गई । दिल्ली के व्यापारी बहुत पारखी थे । उन्होंने थकियों में सोने की उपस्थिति को ताड़ लिया और मुँहमाँगे दाम पर चाँदी की थकिए खरीदने की मानो वहाँ होड़ लग गई । यह सब देख कर सारा माजरा समझने में बाबा साहब को देर नहीं लगी । वह समझ गए कि यह शाही चाँदी की थकिए सामान्य चाँदी नहीं है । तभी तो दिल्ली के बाजार में इन्हें चाँदी के भाव से ऊँचा खरीदने की लालसा सब में है। दरअसल राजसी व्यवहार में खाने के बर्तनों में चाँदी के साथ-साथ सोने का मिश्रण करने का एक चलन शताब्दियों से रहा है । इसका कारण यह रहा कि सोने के मिश्रण से चाँदी में एक प्रकार की सुनहरी चमक आ जाती है, जो उसे अद्भुत कांति प्रदान करती है । यह चमक कभी मैली नहीं पड़ती । अगर एक किलो चाँदी में आधा तोला सोना भी मिश्रित है तो उस चाँदी की थकिया का मूल्य सामान्य चाँदी की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ जाता है । वास्तव में यह स्वर्ण मिश्रित चाँदी के बर्तन तथा अन्य कलात्मक वस्तुएँ रजवाड़ों के शाही वैभव को दर्शाने वाली थीं। सच तो यह है कि नवाब साहब के अनुपयोगी भंडार में एक भी वस्तु ऐसी नहीं थी ,जिसे दोयम दर्जे की कहा जा सके। लकड़ी तक का छोटे से छोटा तथा मामूली आइटम भी कला का उत्कृष्ट नमूना था।
मेरे पिताजी चौदह भाई-बहन थे । नौ बहनें तथा पाँच भाई । बाबा साहब ने सबको सुशिक्षित ,सुसंस्कृत तथा समाज में सम्मान के साथ खड़ा होने के योग्य बनाया।
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

1 Like · 183 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
“समर्पित फेसबूक मित्रों को”
“समर्पित फेसबूक मित्रों को”
DrLakshman Jha Parimal
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह
अंतिम सत्य
अंतिम सत्य
विजय कुमार अग्रवाल
नफरतों के_ शहर में_ न जाया करो
नफरतों के_ शहर में_ न जाया करो
कृष्णकांत गुर्जर
चुनाव में मीडिया की भूमिका: राकेश देवडे़ बिरसावादी
चुनाव में मीडिया की भूमिका: राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कलम और कविता
कलम और कविता
Surinder blackpen
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
बिन परखे जो बेटे को हीरा कह देती है
बिन परखे जो बेटे को हीरा कह देती है
Shweta Soni
Even the most lovable, emotional person gets exhausted if it
Even the most lovable, emotional person gets exhausted if it
पूर्वार्थ
कोई गुरबत
कोई गुरबत
Dr fauzia Naseem shad
पता नहीं किसी को कैसी चेतना कब आ जाए,
पता नहीं किसी को कैसी चेतना कब आ जाए,
Ajit Kumar "Karn"
मनवा मन की कब सुने, करता इच्छित काम ।
मनवा मन की कब सुने, करता इच्छित काम ।
sushil sarna
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों  से  ,
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों से ,
Neelofar Khan
क्यों ? मघुर जीवन बर्बाद कर
क्यों ? मघुर जीवन बर्बाद कर
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"सड़क"
Dr. Kishan tandon kranti
किसी ने बड़े ही तहजीब से मुझे महफिल में बुलाया था।
किसी ने बड़े ही तहजीब से मुझे महफिल में बुलाया था।
Ashwini sharma
मेरे दिल ओ जां में समाते जाते
मेरे दिल ओ जां में समाते जाते
Monika Arora
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय*
*तीरथ-यात्रा तो मन से है, पर तन का स्वास्थ्य जरूरी है (राधेश
*तीरथ-यात्रा तो मन से है, पर तन का स्वास्थ्य जरूरी है (राधेश
Ravi Prakash
मैं अलग हूँ
मैं अलग हूँ
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
समय
समय
Dr.Priya Soni Khare
खत्म हुआ है दिन का  फेरा
खत्म हुआ है दिन का फेरा
Dr Archana Gupta
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
नवल किशोर सिंह
चंदन का टीका रेशम का धागा
चंदन का टीका रेशम का धागा
Ranjeet kumar patre
सब से गंदे चुस्त चालाक साइबर चोर हैँ
सब से गंदे चुस्त चालाक साइबर चोर हैँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
🌸 आने वाला वक़्त 🌸
🌸 आने वाला वक़्त 🌸
Mahima shukla
4307.💐 *पूर्णिका* 💐
4307.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
गवाही देंगे
गवाही देंगे
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
क्या कहता है ये मौन ?
क्या कहता है ये मौन ?
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
तुमसे एक पुराना रिश्ता सा लगता है मेरा,
तुमसे एक पुराना रिश्ता सा लगता है मेरा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Loading...