*संसार में कितनी भॅंवर, कितनी मिलीं मॅंझधार हैं (हिंदी गजल)*
संसार में कितनी भॅंवर, कितनी मिलीं मॅंझधार हैं (हिंदी गजल)
1)
संसार में कितनी भॅंवर, कितनी मिलीं मॅंझधार हैं
गुरुदेव ही नौका सदृश, गुरुदेव ही पतवार हैं
2)
गतिरोध जीवन में मिले, लेकिन न आच्छादित हुए
अब कष्ट में डूबे बिना ही, चल रहे व्यवहार हैं
3)
इस सृष्टि का कण-कण यहॉं, उत्थान और पतन भरा
कब फर्क क्या हीरे मिले, या कॉंच के आगार हैं
4)
पद और पैसा या प्रसिद्धि, न लक्ष्य के आधार हैं
केवल स्वयं को जान पाए, बस वही शुभ सार हैं
5)
जो अपरिग्रह में मिला, वह स्वार्थ-संचय में कहॉं
उपलब्धियों के अर्थ बस, शुभ त्याग वृत्ति विचार हैं
6)
क्या-क्या मिला खोया यहॉं, इसकी उचित चिंता नहीं
इस धरा के इस धरा पर, चिन्ह सब बेकार हैं
7)
सब श्रंखलाऍं कट चुकीं, अथवा कहीं कुछ रह गईं
भव-बंधनों के सोचता, आए नए क्या भार हैं
रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451