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16 Mar 2024 · 1 min read

एक तरफ़ा मोहब्बत

तू मुझे ना देखना चाहे तो ना सही
मेरा तुझको ना देखना मुमकिन ही नहीं
तेरा मुझको ना चाहना तेरी मर्ज़ी है
पर तुझे मैं ना चाहूँ ये मुमकिन नहीं

खो आया हूँ तेरी गलियों में मैं दिल अपना
ले आना साथ अपने, उसे, जो मिल जाए कहीं
चल पड़ा जो कभी लौट के ना आऊंगा
के ये वो मर्ज़ है जिसका है कोई इलाज नही

बहुत रोए तेरे ग़म में और ना रो पाएंगे
फ़रियाद कई है पर बची आवाज़ नहीं
सांसे चलती है और जिस्म अब भी ज़िंदा है
ज़िंदा रहने में मगर वैसे कोई बात नहीं

दर्द दिल का जो मैं किसी से बाँट सकूं
लफ्ज़ तो है कई पर बचे ज़ज़्बात नहीं
मैं भी तोड़ सकूं तेरी तरह दिल तेरा
अब इतने भी सही मेरे है हालात नहीं

बात अब भी बड़े प्यार से किया करती है
उन बातों में मगर पहली सी वो बात नहीं
अपने हाथ को मेरे हाथ में थमा रक्खा है
पास हरदम है मेरे पर वो मेरे साथ नहीं

कई बार तुझको मैंने दिल से भुलाना चाहा
कभी दिल ने तो कभी ज़हन ने दिया साथ नहीं
बैठ तन्हाइयों में मैं कितनी दफा रोया भी
आँखों से अश्क तो आए पर कोई आवाज़ नहीं

एक मुद्दत से तुझे दिल में बसा रक्खा था
तेरी सूरत को इस दिल में बसा रक्खा था
तेरी फितरत को देखा तो मैं ये जान गया
तू ना चाहे इसमें कोई बात नई तो नहीं

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