*** संविधान***
***संविधान***
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हरेक देश का एक विधान होता है,
कानूनो का कोई सार सा होता है।
कोई अदृश्य सा सारथि दिखता,
जो शब्दो मे संविधान कहलाता है।
यही राष्ट्र की नींव की ईंट बनता है,
राष्ट्र का आधार सा जान पड़ता है।
खुशहाली का ये किला सजाता,
देश को मंजिले नवीन दिखाता है।
सब को समान का दर्जा दिलाता है,
इंसान मे परस्पर भेद को मिटाता है।
वंचित को अपनी शरण मे लेता,
दुष्ट के अत्याचार से मुक्त कराता है।
मजहब सभी है समान ये बताता है,
धर्म विशेष को आगे नही बढाता है।
जाति पाति के बंधन काट देता,
सर्वधर्म समभाव का पाठ पढाता है।
हाय!अब जब जब ताज बदलता है,
कोई नया नया नायक बन जाता है।
संविधान मे छेडछाड करता,
मौकापरस्त अपना हित साध लेता है।
✍️प्रदीप कुमार “निश्छल”