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28 Nov 2024 · 8 min read

संविधान दिवस

संविधान दिवस! आज संविधान दिवस है और जैसे ही हम संविधान का नाम लेते हैं तो हमारे सामने एक ही छवि आती है और एक ही नाम आता है। वह है, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का और बाबा साहब का नाम लेते हैं तो हमारे सामने संविधान आता है। हम इन्हीं दो शब्दों के बीच फंस के रह जाते हैं। संविधान का मतलब बाबा साहब। बाबा साहब का मतलब संविधान। इन्हीं शब्दों के चक्कर में कहीं ना कहीं हम बाबा साहब के अन्य रचनाओं, कामों और योगदानों को भूल जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ हम उन महान विभूतियों को, हस्तियों को भूल जाते हैं जो संविधान बनाने में अपना अहम भूमिका निभायें और योगदान दिए थे।
आजकल तो संविधान के नाम पर कई चुनाव समाप्त हो जाते हैं। कई बार संविधान के नाम पर चुनाव जीत भी जाते हैं और कई बार चुनाव हार भी जाते हैं। कुछ लोग तो इस संविधान को लेकर के हाथों में लहराते हैं तो कुछ लोग इसे माथा से लगाते हैं। यह तो अपनी-अपनी संस्कारों के ऊपर निर्भर करता है कि कौन इसे संविधान को मात्र एक पुस्तक के रूप में समझता है? और कौन इसे मात्र एक पुस्तक के रूप में ही नहीं बल्कि संहिता और ग्रंथ के रूप में समझते हैं।
हमारा संविधान जितना मजबूत है उतना ही लचीलापन। जैसे कि आप देखे होंगे आम आदमी थोड़ा सा भी कुछ गलती कर देता है या उसके ऊपर झूठा आरोप भी लग जाता है तो वह जेल चला जाता है। जल्दी बेल नहीं मिलती है और गलती से बेल मिल भी जाती है तो उसके बाद तारीख पे तारीख करके कितना कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है। तब कहीं जाकर के उसे इंसाफ मिलता है। वहीं बड़ी-बड़ी हस्तियां बड़ी-बड़ी कांड करने के बाद भी बेल पर घूमते रहते हैं। उनके ऊपर जल्दी कोई कार्रवाई नहीं हो पता है। बड़े-बड़े नेता दिन रात अनाप-शनाप बोलते रहते हैं। भरी मंच से किसी को धमकी देते हैं तो वहीं भीड़ को उसकाने का काम करते हैं। फिर भी उन लोगों के ऊपर ऐसी कोई कठिन कार्रवाई नहीं होती है। जिससे वे लोग सुधरे…
हमारा संविधान हमारे अधिकारों का ख्याल रखते हुए एक तरफ हमें मूल अधिकार देता है तो वही हमें कर्तव्यों में रहने के लिए दूसरी तरफ हमें मौलिक कर्तव्य भी देता है। हालांकि हम अपने अधिकार के चक्कर में इतने अंधे हो जाते हैं कि हमारा अधिकार हमारे सिर चढ़कर बैठ जाता है और इस अधिकार के चक्कर में हम कहीं ना कहीं मौलिक कर्तव्यों को भूल जाते हैं। हम अपने अधिकारों के चक्कर में दूसरे के अधिकारों को भूल जाते हैं।
संविधान बनाते समय कुछ ऐसी विभूतियों के नाम इतिहास के पन्नों में पता नहीं कहां दबकर रह गया? इसका हमें पता नहीं और नहीं हम पता लगा पाए। हालांकि आज हम इतिहास के पन्नों को पलटेंगे, जिसे शायद आपको पता नहीं होगा कि संविधान बनाने में उन सभी हस्तियों का भी योगदान रहा, जिनका नाम हमारे ज्ञान से दूर रहा…
आज 26 नवंबर है और आज ही के दिन अर्थात 26 नवंबर 1949 ई. को हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ था और इसी दिन हम लोगों ने इसे अपनाया था अर्थात अंगिकृत किया था।
पहली बार 26 नवंबर 2015 में संविधान दिवस मनाया गया और उस समय से प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस पूरे देश में मनाया जाता हैं।
ऐसा नहीं था कि इसके पहले हम लोग इस दिन को भूल गए थे। बल्कि इसके पहले प्रत्येक 26 नवंबर को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था। तो फिर संविधान दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का कारण यह रहा की वर्तमान के भारत सरकार ने 2015 में डॉ. हरि सिंह गौर की जयंती मनाने की सोची और उनके द्वारा संविधान निर्माण में दिए गए योगदान को याद करने की निर्णय ली। इसलिए क्योंकि जिस समय संविधान निर्माण हो रहा था उस समय के सभी सदस्यों में सबसे उम्रदराज डॉ. हरि सिंह गौर थे। डॉ. हरि सिंह गौर शिक्षाशास्त्री होने के साथ-साथ कवि और उपन्यासकार भी थे। उन्होंने अपने निजी धनराशि से सागर विश्वविद्यालय की स्थापना भी की थी। इसी के कारण सौभाग्य से 26 नवंबर को उनकी जयंती थी और 26 नवंबर को ही कानून दिवस मनाया जाता था। इसलिए उस कानून दिवस को बदल करके 26 नवंबर 2015 से संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने का निर्णय लिया गया और तब से पूरे भारत में उनके जयंती के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बात आती है संविधान की। तो आखिर संविधान की जरूरत क्यों पड़ी? हम सभी जानते हैं कि किसी भी देश, राज्य, राजतंत्र, लोकतंत्र, संगठन, पार्टी, संस्थान आदि को चलाने के लिए कुछ नियम, कायदा, कानून की जरूरत पड़ती है। इसके बगैर सही ढंग से कोई भी देश, राज्य, राजतंत्र, लोकतंत्र, संगठन, पार्टी, संस्थान आदि नहीं चल सकती है। इसीलिए हमें अपने देश को चलाने के लिए संविधान की जरूरत पड़ी।
ऐसा नहीं था कि इसके पहले हमारा देश बिना संविधान का चलता था। हमारे देश में संविधान नहीं था। अगर नहीं था तो फिर 1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट, 1861 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम, 1919 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम यह सब क्या था?
इसके पीछे में जब आप जाते हैं तो देखते हैं कि राजा महाराजाओं के द्वारा जो राजपाट चलाया जाता था, उस समय उनके मंत्रिमंडल होते थे। तो उनका भी तो कोई ना कोई कायदा, कानून होगा, जो वह अपने राजतंत्र को चलाते होंगे। उसके बाद जब आप देखते हैं कि मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा भारत पर आक्रमण किया जाता है और उनके द्वारा राज्य स्थापित किया जाता है तो वह भी एक कानून के द्वारा ही अपनी राज्य चलाते हैं। उनके भी मंत्रिमंडल होते हैं और उसमें भी प्रधानमंत्री, सुरक्षा मंत्री जैसे अन्य पद होते हैं।
तो जब पहले से नियम, कायदा, कानून था। संविधान था। तो फिर हमारे लिए नए संविधान की जरूरत क्यों पड़ गई? नई संविधान की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इसके पहले जो भी नियम, कायदा, कानून थे। संविधान थे। वह या तो किसी राजा के द्वारा राज मंत्रियों के द्वारा बनाया गया नियम, कायदा, कानून था या किसी शासक के द्वारा बनाया गया था या ब्रिटिश सरकार के द्वारा बनाया गया था। जिसमें हमारे सारे ख्यालों को, हमारे सारे बातों को ध्यान नहीं रखा गया था। वह अपने अनुसार शासन करने के लिए नियम, कायदा, कानून यानी संविधान बनाए थे। इसलिए हमें अपने संविधान की जरूरत थी क्योंकि हमारा देश आजाद हो रहा था और हम किसी गुलामी के प्रतीक को रखना नहीं चाहते थे और जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता के हितों में ऐसा नियम, कायदा, कानून बनना चाहते थे जिसमें सबके बातों का ध्यान रखा जाए।
संविधान सभा की जहां तक बात है तो संविधान सभा का निर्माण हो। ऐसी विचार सबसे पहले 1934 ई. में बी. एन. राव ने रखे थे। इसके बाद से पूरे भारत में और तेजी से संविधान सभा की मांग उठने लगी। इस मांग को देखते हुए, जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन आदि को देखते हुए। उस समय ब्रिटिश सरकार आनन-फानन में एक कमिटी बनाई। जिन लोगों ने भारतीयों के लिए भारतीय सरकार अधिनियम 1935 ई. लेकर आई। हालांकि इसका भी बहुत ही जोर सोर से विरोध हुआ था क्योंकि इसमें भारत के किसी भी नेता को उस कमिटी में नहीं सम्मिलित किया गया था और अंग्रेजों के द्वारा ही भारतीय लोगों के लिए एक अधिनियम बनाकर के थोप दिया गया।
इस तरह से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा कैबिनेट मिशन के नेतृत्व में भारत में भारतीयों के द्वारा नए संविधान बनाने की घोषणा कर दी गई। अब संविधान निर्माण के लिए पहली बार बैठक 9 दिसंबर 1946 ई. को डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की अस्थाई अध्यक्षता के रूप में हुई। फिर दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 ई. को हुई। जिसमें स्थाई अध्यक्ष के रूप में बिहार के डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को चुना गया, जो बाद में जाकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी बने।
इस तरह से संविधान निर्माण की कार्य शुरू हो गई जिसमें 389 सदस्यों के साथ शुरू हुई। बाद में मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया और अलग देश की मांग के कारण इससे बाहर हो गया। अब 299 सदस्यों के साथ लगातार 165 बैठक तथा 11 सत्र चलें। इसमें बी.एन. राव की अहम भूमिका थी। बी. एन. राव साठ देशों के संविधान का अध्ययन किए हुए थे जिसके चलते संविधान निर्माण में उन्हें संविधान सभा का सलाहकार के रूप में अध्यक्ष बनाया गया और इस संविधान के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही।
संविधान का निर्माण ऐसा नहीं था कि किसी एक अकेला व्यक्ति ने कर दिया। हालांकि इसको बनाने में 299 सदस्यों ने संविधान सभा में भाग लिए। इसके लिए 22 समितियां बनाई गई थी जिसमें से आठ प्रमुख समितियां थी। उन सभी समितियां का कोई ना कोई अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। जिसमें से एक प्रारूप समिति भी था जिसका अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। जिसमें 7 सदस्य थे; डॉ भीमराव अंबेडकर, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, एन. गोपाल स्वामी, के. एम. मुंशी, बी. एल. मित्तर, डी. पी. खेतान और मोहम्मद सादुल्ला। इन लोगों का भी संविधान निर्माण में अहम भूमिका रही।
भारतीय संविधान के लिए सारा नियम, कायदा, कानून लिखने के बाद 21 फरवरी 1948 ई. को प्रारूप समिति के हाथों सारा दस्तावेज सौंप दिया गया। प्रारूप समिति का काम यह था कि जो भी कानून बनाए गए हैं उन्हें अच्छे से सजाने का काम करें।
तभी इधर 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया था और भारत की बंटवारा भी हो चुका था। जिसमें से अलग एक देश पाकिस्तान बना था।
अंततः 4 नवंबर 1948 ई. को प्रारूप समिति ने संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया। संविधान को लिखने में लगभग 6 महीना लगा और इसको प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने सुंदर हैंडराइटिंग में लिखें।
इस तरह से हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 ई. को बनकर तैयार हो गया और 24 जनवरी 1950 ई. को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया साथ ही इस संविधान को उनके हाथों में सौपा गया और इसे 26 जनवरी 1950 ई. को पूरे देश में लागू कर दिया गया।
हम जानते हैं कि जिस समय संविधान बनकर तैयार हुआ। उस समय संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे थे। उस संविधान में कुल 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 08 अनुसूचियां थी। संविधान के पुस्तक में 1,45,000 शब्द थे। उस समय संविधान पुस्तक का वजन 13 किलोग्राम था। वर्तमान में लगभग 448 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां है।
अंततः हम यह कहेंगे कि संविधान का मतलब डॉ. भीमराव अंबेडकर न समझे। क्योंकि हम जानते हैं कि संविधान निर्माण में जितना डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान था उनके उस योगदान को बुलाया नहीं जा सकता है लेकिन इसके अलावा हमें उन हस्तियों को भी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना अहम योगदान भी दिया।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।

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