संविधान का पालन
देश के संवैधानिक पदों की एक,बहुत ही सम्मानित गरिमा होनी चाहिये।
जिसको सम्मान देने की आदत,देश के प्रत्येक नागरिक की होनी चाहिये।।
संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति, जनता का प्रतिनिधि भी कहलाता है।
जो धूमिल करता है इन पदों की गरिमा को,जनता का दोषी माना जाता है।।
अपमान नहीं होना चाहिये इन पदों पर,बैठे हर सम्मानित व्यक्ति का।
सज़ा होनी चाहिये उसको जो हिम्मत करे उसके सम्मान में कुछ भी कहने का।।
राजनीति में अपने विरोधियों से,सबको हर मोर्चे पर लड़ना पड़ता है।
अपने प्रतिद्वंदी की हर अच्छी बुरी,आदत को जनता तक पहुँचाना पड़ता है।।
संसद हो या विधान सभा प्रतिनिधि की भाषा पर अंकुश लगाना बहुत ज़रूरी है।
संवैधानिक सदनों में मर्यादित भाषा का उपयोग कठोरता से होना भी ज़रूरी है।।
पदासीन व्यक्ति की शान में की गई गुस्ताखी में सज़ा का प्राविधान करो।
संविधान में पदासीन के सम्मान को
हर संभव सुरक्षित रखने का प्रावधान करो।।
कहे विजय बिजनौरी देश में संविधान का कठोरता से पालन होना ही चाहिये।
जनता द्वारा चुना प्रतिनिधि यदि तोड़े तो उसको सजा भी दोगुनी ही देनी चाहिये।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।