संभलो-संभलौ
संभलो-संभलो
हिल रही है नींव
देश की
अर्थव्यवस्था की
हिल ही नहीं रही
हजारों किलोमीटर
चल भी रही है पैदल
खा रही है
पुलिस के डंडे
बेढंग हो गई
इसकी चाल
होकर शिकार
भूख-प्यास-उपेक्षा की
तोड़ रही है दम
उसी नींव पर
खड़े महल में
रह रहे हैं धर्माचार्य
शासक-प्रशासक
कल-कारखानों के मालिक
नेता-अभिनेता
लेखक-चित्रकार
छायाकार-पत्रकार
संभावित है दुर्घटना
संभलो-संभलो
समय रहते संभलो
-विनोद सिल्ला©