संबंध
संबंध
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अस्थियां रोती रही,अपना नहीं आया कोई
राख के इस रूप में मुझको न पहचाना कोई।
मुझसे जन्मे कई रिश्ते प्रेम के और प्यार के
पुत्रियाँ कुछ पुत्र भी कुछ स्वार्थ के उद्गार थे।
उनके लिए पल पल जिया जो रक्त थे पर दूर थे
चिता पर उसने लिटाया जो दूर थे पर रक्त थे।
रक्त का संबंध सचमुच दिल को दहलाता बहुत है
बाहर है कुछ भीतर में कुछ यही कलपाता बहुत है।
काश कोई आ भी जाता मुझको ले पाता कलश में
माँ ही हूँ ना,बह ही जाती,नदी या पोखर के जल में।
दुःख भी है,दुर्भाग्य भी यह जो कोरोना दे गया
रिश्ते कोमल सुकोमल को बदनाम तो कर ही गया।
अब करेगा कौन बोलो विश्वास अपनों पर यहाँ
संबंध की अस्थि जली, रो रहा सारा जहां।
संबंध की अस्थि जली, रो रहा सारा जहां ।
-अनिल मिश्र