संघर्षी गीत
आशाओं की पगडंडी पर,
चला ढूँढने ठाँव ।
अवसादों की आँधी
रह-रह, डिगा रही है पाँव ।।
संघर्षों की परिपाटी पर,
अभिलाषा ने चित्र उकेरे ।
विहग उड़ चले अम्बर में
फिर, खोज रहे हैं नए बसेरे ।
थक कर हार गए जब
ढूँढें, पीपल वाली छाँव ।।
कुंठाओं के दलदल में
फँस, जाने कितने पाँव सड़े हैं ।
साधन सारे सुख के देखो,
घर में दुख के कैद पड़े हैं ।
तोड़ दुखों का द्वार
मिलेगा, खुशियों वाला गाँव ।।
उत्तर की इच्छा में देखो,
प्रश्न अनेकों रह जाते हैं ।
मोह-जाल में बँधकर आखिर,
शान्ति कहाँ सब जन पाते हैं ?
भागम-भाग भरे जीवन में,
रह जाती है काँव ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०