संकुचित नहीं है ध्येय मेरा
सागर की गहराई कितनी है ?
हिमालय की उंचाई कितनी है ?
कितना विशाल है आकाश का ये घेरा ?
मेरी कोई सिमा नही है
संकुचित नहीं है ध्येय मेरा
राह पर्वत से निकालूं
आसमान में घर बना लूं
चांद पर मैं चाहूं बसेरा
मेरी कोई अड़चन नहीं है
संकुचित नहीं है ध्येय मेरा